भले ना हो पास मेरे शब्दों का खजाना, ना ही गा सकूँ मै प्रसंशा के गीत, सरलता मेरे साथ, स्मृति मेरी अकेली है, मेरी कलम मेरी सच्चाई बस यही मेरी सहेली है..
नीचे बहै वारि तापे कच्छप सवार है, कच्छप की पीठ.पै सवार शेषकारा है शेष पै सवार अवनि भार स्यों दबाय रह्यो, अवनि पै सवार शुंभ पर्वत विस्तारा है, शुंभ पै सवार शंभु,शंभु पै सवार जटा, जटा पै सवार भागीरथी जी की धारा है।