रविवार, 28 जून 2015

पगली

युग बदले पर तुम ना बदलीं,
हम भी पागल तुम भी पगलीं,

पायल धुन है वही पुरानी,
प्रेम रीत भी है अनजानी,
मन तो मेरा पिघल चुका है,
लेकिन तुम अब तक ना पिघलीं,
हम भी पागल तुम भी पगली,

सावन तो आता जाता है,
पपिहा पंचम सुर गाता है,
फिर भी ना जाने क्यूँ हमको,
ऋतुएं लगती नकली,
हम भी पागल तुम भी पगली,

बरखा कैसे जलन मिटाए,
बूँद बूँद तन मन सुलगाये,
बैरन बन गई जान हमारी,
अब निकली  तब निकली,
हम भी पागल तुम भी पगली।