भले ना हो पास मेरे शब्दों का खजाना,
ना ही गा सकूँ मै प्रसंशा के गीत,
सरलता मेरे साथ, स्मृति मेरी अकेली है,
मेरी कलम मेरी सच्चाई बस यही मेरी सहेली है..
सोमवार, 2 नवंबर 2015
भागीरथी महिमा
नीचे बहै वारि तापे कच्छप सवार है,
कच्छप की पीठ.पै सवार शेषकारा है
शेष पै सवार अवनि भार स्यों दबाय रह्यो,
अवनि पै सवार शुंभ पर्वत विस्तारा है,
शुंभ पै सवार शंभु,शंभु पै सवार जटा,
जटा पै सवार भागीरथी जी की धारा है।
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आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए अग्रिम धन्यवाद....
आपके द्वारा की गई,प्रशंसा या आलोचना मुझे और कुछ अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करती है,इस लिए आपके द्वारा की गई प्रशंसा को मै सम्मान देता हूँ, और आपके द्वारा की गई आलोचनाओं को शिरोधार्य करते हुए, मै मस्तिष्क में संजोता हूँ.....
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और आपके द्वारा की गई आलोचनाओं को शिरोधार्य करते हुए, मै मस्तिष्क में संजोता हूँ.....