सोमवार, 28 सितंबर 2015

"गुत्थी" मनहरण घनाक्षरी

देस केरि दसा देखि,जिउ जरा जात है,
लोकतंत्री मुलुक मा यो विस्वासघात है,
मइकूराम भूखन मरे जरे कण्डा बारि के,
कइसे बनै रोटी आटा कच्चै चबात हैं,
पातिउ बीनै नाई देत खेत तार बाँधे हैं,
ईसुर धूरि धूरि मइहा सब जने बतात हैं,
ओट ओटि लेत हैं पाछे कोउ देखत नाई,
गुत्थी के जीवन मा या अन्धेरी रात है,
राति होय पूस केरि जेठ कै बयार होय,
नाजु भरै उनके घर हमार खाली हाँथ है,
नीर नाइ आँखिन बुढ़उ परे खाँसि रहे,
महतारी छूछी टाठी रोजु खटपटात है,
नून आटा सानि सानि बच्चा जियाए है,
पानी पियै बार बार भूखन छटपटात है,
ठाकुर कहेन रहै यादि आवै बार बार,
तुम्हार दुख: मेटि देब या हमार बात है,
नाजु ले साजु तुम आजु रात चली आएव,
आधी रात ढोर तना दउरी चली जात है,
सूखी परी आँखी गुत्थी मरी आज रात,
जियै खातिन यहै अब रस्ता देखात है,

सोमवार, 14 सितंबर 2015

राज़..

सुबह गुज़री उम्र बीती साँझ भरमाने लगी है,
पलक भी बोझिल हुई नींद अब आने लगी है,

हूँ गगन से दूर फिर भी रात आँखो मे बसी है,
मस्त सावन की हवा भी लोरियाँ गाने लगी है,

पलक मूँदू जैसे ही मैं ख्वाब में वो हमनशीं है,
चाँदनी की चमक से मदहोशियाँ छाने लगी हैं,

तितलियों का रंग देखा उनके मुखड़े पर हँसी है
हर कली भी शाख पे मदमस्त लहराने लगी है,

किंतु सब कुछ छोड़ कर वासना की चाहना में,
रिक्त सी हर शै ज़मी की घर युँ ही जाने लगी है,

सुरभि संदल की उड़ी औ मंत्र उच्चारण हुआ है,
मुक्ति की उम्मीद में हर लाश अँगड़ाने लगी है,

कह रह हूँ "राज" सबसे अब सुनो या ना सुनो,
गीत अंतिम है ये मेरा मृत्यु अब भाने लगी है,
                             
सुबह गुज़री उम्र बीती साँझ भरमाने लगी है,
पलक भी बोझिल हुई नींद अब आने लगी है,
  
                                    राजेन्द्र अवस्थी....

रविवार, 6 सितंबर 2015

मुक्तक जैसा कुछ..

किस से सीखू मैं खुदा की बंदगी,
सब लोग खुदा के बँटवारे किए बैठे है,
जो लोग कहते है खुदा कण कण में है,
वही मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे लिए बैठे हैं !

मेरे हौसले को देख मेरे जज़्बात को ना देख,
मेरी बादशाही देख मेरे हालात को ना देख,
तपा कर रूह को अपनी ये इश्क ए जाम पाया है,
मेरे हिस्से में रंज ओ ग़म यही ईनाम आया है,
रही है बस यही दौलत मेरे दिल के खजाने में,
के तेरे ही नाम के पीछे मेरा भी नाम आया है,

गांव छोड़ के शहर आया था,

फिक्र वहां भी थी फिक्र यहां भी है।

वहां तो सिर्फ 'फसलें' ही खतरे में थीं

यहां तो पूरी 'नस्लें' ही खतरे में है

दिल पे लिखने का हुनर मुझको बता देते,
आप सिखाते मैं न समझता तो सज़ा देते,
हर जगह आज़माया है हाँथ मेरे बुजुर्गों ने,
काश़ मेरे लिखने के लिये कुछ तो बचा देते।

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

ट्रेड यूनियन का नेता

बेमतलब की बात है ये वो गुण्डा है या नेता है,
आपतो मतलब इससे रक्खो तुमसे वो क्या लेता है,

बचा नही पाओगे कुछ भी झोंकेगा आँखो में धूल,
लूटेगा सपनो को या फिर सपनो का विक्रेता है,

अपना सपना पूरा करता झूठ दंभ पाखण्ड सहित,
कुर्सी उसकी बची हुई है क्यो की वो अभिनेता है,

खुद के सुख की खातिर ये तो शातिर चाले चलता है,
सुख की इच्छा मत कर बंदे ये तो दुख ही देता है,

दारू गोश्त है अमृत इनका पानी नही ये पीते हैं,
कर्णधार तुम समझो इनको यही आज के नेता हैं,