बुधवार, 8 जुलाई 2015

प्रभात फेरी..

ले लो मेरा सब कुछ मेरे लिये सब बेकार है,
गुर्दा दे दो लोकतंत्र को उसी को दरकार है,
आँख मेरी तुम लगा दो बेशर्म कानून को,
भारत की माटी में मिलाना मेरे सारे खून को,
मिट चुकी है विश्व में जो शान हिंदुस्तान की,
वापस लाना है उसे कीमत हो चाहे जान की,
बेहोश करने की कोई ना जरूरत है मुझे,
देश के दुश्मन से बे-इंतहा नफरत है मुझे,
इसलिये तुम खींच लेना धमनियाँ सारी मेरी,
राखी का धागा बनाना बहन जो लुट कर मरी,
रोक देना साँस मेरी तुम कफन से मूँद कर,
आबोहवा निर्मल बनाना हर गली में ढूँढ़ कर,
राह के गड्ढों में भरना राख तुम मेरी चिता की,
संवेदना जीवंत रखना इस तरह मेरे पिता की,
ठोकर ना लग पाये उन्हे राह में चलते समय,
लड़खड़ायें  जब भी वो तो हाँथ में मेरे थमें,
जोड़ कर डण्डा बनाना हड्डियों को मेरी तुम,
फिर तिरंगे संग लगाना प्रभातियों की फेरी तुम,
इस तरह शायद उरिण हो जाऊँ माँ के कर्ज से,
माँ भारती के पुत्र का नाता निभा दूँ फर्ज से।

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