सोमवार, 21 जुलाई 2014

दिल की बात-2.


सुप्रभात मित्रों... आज की भोर कुछ विशेष होनी चाहिये.
पिछले कुछ दिनों से देश में महिला अपराधों की बाढ़ सी आ गई है. हर तरफ चर्चा का बाज़ार लगा है किसी को तस्वीरें नागवार गुज़रती है तो कोई चालचलन पर कीचड़ उछाल रहा है. किसी को स्त्री स्वतंत्रता सुहाती तो कोई कपड़ों को लेकर परेशान है..अपराधियों को कोसने के अतिरिक्त तथा इन दुुर्दान्त घटनाओं  पर चर्चा करने के सिवा कोई भी कुछ नहीं कर पा रहा है. इन सब बातों के बींच बेचारी अबला स्त्री सदियों से पिस रही है.
निदान क्या है? समाज में महिलाओं का शोषण कब रुकेगा.? हमारे देश में समाज में घरों में वास्तव में देवी का स्थान नहीं इंसान से बराबरी का दर्जा महिलाओं को  कब प्राप्त होगा? साक्षरता,परिस्थितियों से जूझने का माद्दा, सहनशीलता,सरलता,सहजता,सुचिता आदि सारे गुण होने के बाद भी स्त्री दशा में जो सुधार दिखने चाहिये थे वो कहीं नहीं दिखते. वास्तव में आज भी हम सभी पुत्र मोह, वंश वृक्ष को हरियाते हुए देखने की लिप्सा से जरा भी मुक्त नहीं कर पाये हैं.और प्राकृतिक रूप से भी स्त्री पुरुष की अपेक्षा दुर्बल है. यही प्राकृतिक दुर्बलता महिलाओं के आत्मविश्वास में कमी उत्पन्न करने का कारण है और शिक्षा के अवसर तथा स्वतंत्रता मिलने के बाद भी नारी दशा में कोई विशेष सुधार दृष्टिगत नही होता. आज हमें गम्भीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है कि अपने देश में समाज में तथा घर में हम नारी के सम्मान को किस प्रकार बचाये रख सकते हैं मैं बढ़ाने की बात नहीं कर रहा बस जितना है उसी को बचाना है बनाये रखना है.
इसलिये आज और अभी हम सभी को विशेषरूप से महिला मित्रों से मेेरा निवेदन है कि भावी माताओं को हम आत्मविश्वास से परिपूर्ण करने के लिये उचित कदम उठायें इसके लिये हमारा पहला प्रयास बेटियों की शारीरिक दुर्बलता को हटा कर उनमें साहस एवं शक्ति का संचार करना होगा और इस उत्तम कार्य के लिये स्कूल से अच्छा माध्यम कोई नहीं हो सकता...स्कूल स्तर पर ही बच्चियों को जूडो,कराटे का प्रशिक्षण दिलाने की व्यवस्था हमें करनी होगी.
जिस प्रकार स्कूलों में स्काउट और गाइड तथा एन.सी.सी. के प्रशिक्षण की व्यवस्था होती है उसी प्रकार जूडो कराटे के प्रशिक्षण की व्यवस्था भी लड़कियों के लिये प्रत्येक स्कूल में अनिवार्य रूप से होनी चाहिये...तो सम्भव है हम किसी हद तक महिला अपराधों में हो रही वृद्धि को रोकनेे में सफल हो पायें।