रविवार, 31 अगस्त 2014

हाय-क्यूँ...!

1-जय गणेश,
छि: उत्तर प्रदेश,
गर्मी अशेष,

2-गर्मी पसीना,
गणेशोत्सव महीना,
मुश्किल जीना।

3-वो चूहा चोर,
कलियुग है घोर,
जोर का शोर।

4-सैलाबी आँसू,
बा बहू और सासू,
कहानी धाँसू।

5-प्रभु छेड़ो ना,
करने दो आराम,
दिल तोड़ो ना।

6-ऊपर देर,
मंदिर में अंधेर,
वक्त का फेर।

7-होली यूँ जली,

लपटे रंगीन थी,

सूनी थी गली।


8-पास पैसे थे,

पिचकारी लेनी थी,

फिर से गिने।

गुरुवार, 28 अगस्त 2014

हे गणपति महराज

भक्त तुम्हारे हम भी हैं हे गणपति हम पर दया करो,
निर्धन हैं पर भक्त तो हैं हे गणपति हम पर दया करो,
विघ्नविनाशक तुम हो हे प्रभु विपति निवारणहार हो,
हम संकट में पड़े हुओं के तुम ही तारणहार हो,
आधी सड़क को प्रभु घेरे हो कैसा ये इंसाफ है,
धनी भगत के लिये प्रभू क्या सारे अवगुण माफ हैं,
मुझको लगता हे गणपति तुम डीजे धुन में मस्त हो,
निर्धन भक्त तुम्हारा चाहे सड़क पे कितना पस्त हो,
पेट तुम्हारा भरा हुआ है मोदक और मिठाई सेे,
हम तो भूखे फंसे जाम में भक्तों की निठुराई सें,
आरति के संग डिस्को भी होता तुम्हरे दरबार में,
चूहा भी है पूँछ पटकता मिल भक्तो के प्यार में,
वारे न्यारे लाखों के पूजा में रोज ही होते हैं,
पर पंण्डाल के बाहर बच्चे भूँखे पेट ही सोते हैं,
हे प्रभु कुछ तो दया करो क्या कलियुग में सब भूल गये,
रंग रंगीली रास रचा मस्ती का  झूला झूल गये,
बने मदारी डगर डगर पर प्रभु मंदिर में अच्छे थे,
सिद्धिविनायक लम्बोदर दरबार तुम्हारे सच्चे थे,
अब तो बैठे हो भगवन तुम चौराहों और नुक्कड़ पे,
पेट में चूहे कूद रहे है दया करो मुझ भुख्खड़ पे,
सुलझा दो ये जाम डगर का करते तुम उपकार हो,
हे जग वंदन पार्वती नंदन तुम ही पालनहार हो,
नाच नचा लो ग्यारह दिन फिर होगा विसर्जन धूम से,
परेशान सब राही होंगे हल्ला गुल्ला बूम से।

बुधवार, 20 अगस्त 2014

हे प्रभु देवा.

अब शुरू हुई पकड़म पकड़ाई..इस पकड़म पकड़ाई को देख मीडिया भी चकराई...
वो कहावत तो सबने सुनी ही होगी. उँगली पकड़ के पहुँचा पकड़ना..बस अब यही पहुँचा पकड़ाई हो रही है सत्ता से बाहर हुए लोगों में. और जितना बचा खुचा सीना है उसी को तान के हो रही है..बुझाया कि नाहीं  ई लाल बुझक्कड़ी में मित्र लोग खूब उलझे हुए हैं..और इसी उलझन में हम सब आलू की बेतहाशा बढ़ती कीमत भी भूल जाते हैं..लेकिन हाय रे बिहार. यहाँ के लोग लालू को ना भूल पायेंगे.
चाहे कितनहो चारा कोई चर जाये. गिन्नीज़ बुक वाले लगता है आराम फरमाने लगे हैं नहीं तो आज चारा के मामले में  बिहार का नाम ई विश्व रिकार्ड बुकवा में जरूर होता. खैर कोई बात नहीं भइया गिन्नीज वालों अब तो चेतो.
चारा ना सही पहुँचा पकड़ाई में ही नाम डाल दो. भारतीय राजनीति के नाम भी रिकार्ड लिख दो. वइसे यहाँ सब एक से एक लिखने वाले हाजिर हैं लेकिन मजाल है जो कोई राजनीति के रिकार्ड पर बात करे या पकड़म पकड़ाई की चर्चा करे.....हे प्रभु देवा, खूब बाँट रहे हो मेवा..

बुधवार, 13 अगस्त 2014

स्मृणिका.

मंज़िल को पास जो देख लिया,
बेकल हो हर पल बीत रहा,
स्मृणिका को नमन करूँ,
पल पल अब मेरा रीत रहा,

चल पड़े सभी थे साथ मेरे,
थल नभ सौरभ वृंद सभी,
स्वांस भी मेरे साथ रही,
औ जीवन के मकरंद सभी,

इक इक क्षण को गिनूँ अगर,
अनगिनत ना बीते होंगे क्षण,
सब उल्लासों का लेखा दूँ,
कम होंगे ना जीवन के वृण,

सारी रीत निभा कर के,
अब बना है जीवन गीत मेरा,
स्वाँस रहे ना साथ भले,
बस साथ रहे वो मीत मेरा,

मंज़िल को पास जो देख लिया,
बेकल हो हर पल बीत रहा,
स्मृणिका को नमन करूँ,
पल पल अब मेरा रीत रहा,

रविवार, 10 अगस्त 2014

हितैषी..

मत आना मुझे देखने,
जब अस्पताल में हो बसेरा मेरा,
मत सोंचना मेरे बारे में तुम,
कोई पीड़ा का पैमाना लेकर,
अपनी छुद्र  मानसिकता से,
बाहर रखना मेरे परिवार को भी,
मैं कोई प्रदर्शन की वस्तु नहीं हूँ,
क्या देखोगे?क्यों देखोगे?
क्या देखोगे रुग्णावस्था मेरी?
या असहाय हो चुके मेरे बच्चों के चेहरे?
या फिर भविष्य से डरी हुई मजबूर स्त्री?
पीला मुखमण्डल सूखे होंठ,
तुमको तो ये सब ग्लैमरस लगते हैं,
सहयोग राशि देते हुए उसकी उँगली को छूना,
और अधिक सहायता के लिये पूँछना,
तुम्हारी आँखों की चमक,
तुम्हारी शैतानी मुस्कराहट,
बेहोश होने से पहले मैं देख चुका था,
क्या बहुत जरूरी है इस अमानवीय,
सामाजिक कर्तव्य को पूरा करना?
या कि, मेरी असहाय अवस्था को,
देखना अत्यंत आवश्यक है?
मैं जानता हूँ ये भी कि,
घृणा है तुम्हे इन जगहों से,
सहज नही हो पाते हो तुम,
नाक पर रूमाल बाँध कर वार्ड में तुम्हारा आना,
अपने जूतों में असंख्य हानिकारक,
जीवाणुओं को साथ लेकर,
फिर हितैषी कैसे हो सकते हो मेरे,
मात्र तुम्हारे देखने भर से क्या,
कोई चमत्कार हो जायेगा?
मैं स्वस्थ हो कर तुमसे हाँथ मिलाऊँगा?
मेरी समस्त पीड़ा और संताप हर लोगे तुम,
काश़ ऐसा कर पाते तुम.....