शनिवार, 11 मई 2013

तेरा आँचल

बहुत रोया हूँ,
जीने के मोड़ पर बैठ कर,
सिसकते हुए पुकारा है कई बार,
कई कई बार, माँ को,
और फिर मैने देखा है,
पनीली आँखों से माँ को,
अपने होंठो पर उंगली रख कर,
मुझे चुप हो जाने का इशारा करते हुए,
तब मुझे ज्ञान नहीं था,
आत्माओं के बारे में,
लेकिन ना जाने क्यों,
वो जीने का मोड़,
माँ की गोद का अहसास कराता था,
और अक्सर ही महसूस होती थी,
माँ की छुअन उस मोड़ पर,
अचानक ना जाने क्या हुआ?
मैं वही हूँ,
जीने का मोड़ भी वही है,
पर माँ नहीं दिखती अब मुझे,
क्या आँखो का पानी मर चुका है?
या मेरी नज़रे कमज़ोर हो चुकी हैं?
या मुझे ज़रूरत नहीं रही माँ की?
या संवेदनशीलता खत्म हो चुकी मेरी?
नहीं नहीं मैं इतना पाषाण ह्रदय नहीं हो सकता,
हाँ शायद मैने विकल्प तलाश लिया है,
माँ का,
हाँ ये सच है,
तुझमें माँ दिखती है मुझे,
मेरे जीवन साथी के रूप में,
आखिर तू भी मुझे कभी रोने नही देती,
हाँ तू माँ है,
ये सच है कि, तू माँ भी है