गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

पागल कवि

क्या कवि पागल होता है,
धरती से अम्बर तक जाना,
शब्दों का अनमोल खजाना,
बेढ़ंगी सोंचो को गढ़ना,
निपट अकेला आगे बढ़ना,
नूतन रोज फसल बोता है,
क्या कवि पागल होता है?
जीवन की आपाधापी को,
पुन्य प्रतापी और पापी को,
पतझर को मधुमास बनाता,
एकाकी रंग रास रचाता,
स्वर्णिम पल पल में खोता है,
क्या कवि पागल होता है?
नई दिशा दर्शन देता है,
अतिशय दर्द प्रखर लेता है,
मौन मनोभावों को सबके,
चुन के शब्द मुखर देता है,
संवेदित मन मीत बना कर,
उर के अंदर ही रोता है,
क्या कवि पागल होता है?
विरह वेदना की ज्वाला को,
प्रेम प्रीत की मधुशाला को,
पीड़ा की कंटक माला को,
अंतस की कड़वी हाला को,
उद्गारों को भर प्यालों में,
सुकरात के जैसे विष पीता है,
क्या कवि पागल होता है?