बुधवार, 29 अगस्त 2012

छाया मेरी परमात्मा,


शांत निर्मल स्निग्ध छाया,
निश्छल निस्वार्थ निर्लेप पाया,
रहती मेरे ही सहारे,
मै हँसू तो दिल वो हारे,
जब गमों का साथ होता,
छाया का संताप रोता,
वख्त कुछ मै चिढ़ गया,
छाया से इकदम भिड़ गया,
प्रतिरूप क्यों मेरा बनाती,
साथ प्रतिपल क्यों निभाती,
छोड़ दो कुछ पल अकेला,
छाँट दो भ्रम का ये मेला,
मै हूँ जब तक तुम भी हो,
और साथ मेरे गुम सी हो,
मौन ही छाया रही,
स्तब्ध सी काया रही,
फिर मै समर्पित हो गया,
छाया को अर्पित हो गया,
बैठा हूँ अब छाया लिये,
रोशनी का क्षय किये,
दिन की दरिया छोड़ दी,
रात्रि से लौ जोड़ दी,
दिन है कैसा दिन कहो,
ऐसे दिन मे तुम रहो,
जिस दिन में छाया हो विलग,
उस दिन से रहता मै सजग,
तो रात्रि है दिन से भली,
है साथ छाया बावली,
छाया है मेरी आत्मा,
छाया मेरी परमात्मा,