आज एक चिड़िया अपनी चोंच में एक कतरा
धूप भर कर मेरे कमरे मे डाल गई,
मुझे हिकारत से देखा और, कुछ जलते हुआ प्रश्न उछाल गई,
क्या ए.सी.मे रहने वालो को गर्मी नही लगती,
प्यास से सूखते गले मे सुइयां नही चुभतीं,
कब तक और कितने तरीकों से बचाओगे अपने अस्तित्व को,
कैसे कैसे महान बनाओगे खुद के व्यक्तित्व को,
ठण्डी हवायें कब तक रहेंगी आस पास,
कब तक ना लगेगी तुमको प्यास,
खेत,खलिहान,तालाब,पोखर,बाग,
नेह,मेह,सम्वेदना,संगीत,राग,
बना दो सब को बोनसाई,
इसांन बना ईश्वर ये आवाज़ चिड़िया ने लगाई,
रहो अपने स्वार्थ और लालच के संसार में,
इस एक कतरा धूप को भी बेंच दो बाजार में,
जाते जाते ए.सी.का ठण्डापन, मेरी सोंचों मे भर गई,
और वो एक कतरा धूप अपनी चोंच से मेरे कमरे में धर गई...
मुझे हिकारत से देखा और, कुछ जलते हुआ प्रश्न उछाल गई,
क्या ए.सी.मे रहने वालो को गर्मी नही लगती,
प्यास से सूखते गले मे सुइयां नही चुभतीं,
कब तक और कितने तरीकों से बचाओगे अपने अस्तित्व को,
कैसे कैसे महान बनाओगे खुद के व्यक्तित्व को,
ठण्डी हवायें कब तक रहेंगी आस पास,
कब तक ना लगेगी तुमको प्यास,
खेत,खलिहान,तालाब,पोखर,बाग,
नेह,मेह,सम्वेदना,संगीत,राग,
बना दो सब को बोनसाई,
इसांन बना ईश्वर ये आवाज़ चिड़िया ने लगाई,
रहो अपने स्वार्थ और लालच के संसार में,
इस एक कतरा धूप को भी बेंच दो बाजार में,
जाते जाते ए.सी.का ठण्डापन, मेरी सोंचों मे भर गई,
और वो एक कतरा धूप अपनी चोंच से मेरे कमरे में धर गई...