रविवार, 8 जुलाई 2012

चिड़िया

आज एक चिड़िया अपनी चोंच में एक कतरा धूप भर कर मेरे कमरे मे डाल गई,
मुझे हिकारत से देखा और, कुछ जलते हुआ प्रश्न उछाल गई,
क्या ए.सी.मे रहने वालो को गर्मी नही लगती,
प्यास से सूखते गले मे सुइयां नही चुभतीं,
कब तक और कितने तरीकों से बचाओगे अपने अस्तित्व को,
कैसे कैसे महान बनाओगे खुद के व्यक्तित्व को,
ठण्डी हवायें कब तक रहेंगी आस पास,
कब तक ना लगेगी तुमको प्यास,
खेत,खलिहान,तालाब,पोखर,बाग,
नेह,मेह,सम्वेदना,संगीत,राग,
बना दो सब को बोनसाई, 
इसांन बना ईश्वर ये आवाज़ चिड़िया ने लगाई,
रहो अपने स्वार्थ और लालच के संसार में,
इस एक कतरा धूप को भी बेंच दो बाजार में,
जाते जाते ए.सी.का ठण्डापन, मेरी सोंचों मे भर गई,
और वो एक कतरा धूप अपनी चोंच से मेरे कमरे में धर गई...

बदली में ,

चाँद आज छुप गया था बदली में ,

अठखेलियाँ थी खूब जारी,
बदलियों के दिल भारी,
छुप छुप के आता था,
चाँद मन चुराता था,
बदली को नचाता चाँद उंगली में,
चाँद आज छुप गया था बदली में,

बदलियाँ बैरागी थीं,
प्रेम अगन लागी थी,
बदलियों का अकुलाना,
बैरी चाँद छुप जाना,
हो गई अमावस रात उजली में,
चाँद आज छुप गया था बदली मे,

चाँद ने बहुत रोका,
बदलियों को था टोंका,
है चाँदनी प्रिया मेरी,
संगिनी सदा चेरी,
मन हारा चाँद चाँदनी सी पगली में,
चाँद आज छुप गया था बदली में




गिला

कितना सारा गिला,
इंतज़ार बिजली के आने का,
संशय सवेरे ना उठ पाने का,
गैस का खतम होता सिलेंडर,
अन्ना के सामने कांग्रेस का डिफेंडर,
साल की सबसे अधिक ठंडी रात,
गुज़ार दी तनहा तुम्हारी यादों के साथ,
यादें बता देती है उम्र का तकाजा,
साँसों से कहता है प्राण,अभी ना जा,
जीवन भर साथ चलते है शिकवे गिले,
जैसे कल रात ख़्वाब में तुम मुझे नही मिले,
पर कैसे कहूँ नज़रों के सामने थे तुम,
राह भटकी जब कोई मुझे थामते थे तुम,
माह गुज़रे साल गुज़रे गिले बांकी रह गए,
ख़्वाबों में यादों में मौन ही सब कुछ तुम कह गए,
अब शेष हूँ मै, तुम्हारे ख़्वाब, तुम्हारी याद,
वो जगह, जहां पहली बार, तुमसे मिला,
और कुछ शेष है, तो वो है सिर्फ गिला, सिर्फ गिला,सिर्फ गिला......