रविवार, 6 मई 2012

रे ध्वनि ....

रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
चीखती फिरती फिर इस दम किसलिए तुम मौन हो ,
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,

मस्त करती मानसिकता शांत चित्त आनंन्द हो ,
अनुभूति की नव रौशनी और दिव्य परमानन्द हो
शांति की सरिता हो तुम या समुद्र का शोर हो ,
सहचरी हो जीव की या या जीव का तुम ठौर हो ...

रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,

गूंजती  है गूँज निर्जन बाग और खलिहान में ,
ध्वनि  मचलती है पवन के शोर में तूफ़ान में ,
कुछ तो कहो अब चुप न रहो अब शब्द के अवसान मे,
बोल दो मधु घोल दो तुम शब्द का सिरमौर हो,

रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,

कणिका  तुम्ही क्षणिका तुम्ही हर शै में बसती हो तुम्ही ,
शून्य दीखता शून्य पर ब्रम्हांड भी निर् ध्वनि नहीं ,
श्वांश का उच्छ्वांस का एहसास का तुम शोर हो ...
प्राण में पनघट में ध्वनि तुम ही हो या कोई और हो ,

रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,

नाता हो तुम जग से जगत का ,
सूत्र हो गत से विगत का ,
आधार तुम सब कार्य का ,शिष्टाचार हो व्यवहार का ,
मौन कैसे हो कोई जब व्याप्त तुम सब ओर हो ..
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,