शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

साली बरखा की फुहार



प्रभु गोरी दो या काली दो बस मुझको तुम एक साली दो,

पत्नी एग्रिमेण्ट भले ही हो पर साली महिमा माया है,
पत्नी धूप भरा जीवन पथ साली सावन छाया है,
पत्नी साथ भले ही हो पर घर सूना सा लगता है,
साली यदि हो पास कभी तो सब दूना सा लगता है,
मुझे मक्खन खीर मलाई की ना भरी हुई तुम थाली दो,

प्रभु गोरी दो या काली दो...........

पत्नी घर का काम काज और चूल्हा चौका बर्तन है,
साली वर्षों की मेहनत का क्षणिक ह्रदय परिवर्तन है,
पत्नी नित दिनप्रतिदिन का बेजान पुराना कीर्तन है,
और साली बरखा की फुहार में विद्युत जैसा नर्तन है,
मेरी उजड़ी बगिया को फिर हरा करे वो माली दो,

प्रभु गोरी दो या काली दो बस मुझको तुम एक साली दो,

पत्नी का मै नौकर हूँ और साली पर मै रीझा हूँ,
कुरूक्षेत्र के घमासान का प्रस्तुत स्वयं नतीजा हूँ,ं
मुँह कड़वाहट से भर जाए मै सड़ा हुआ वो बीजा हूँ,
रस विहीन जीवन जिसका वो बदनसीब मै जीजा हूँ,
हे भगवन सीधी साधी दो या फिर कोई बवाली दो,

प्रभु गोरी दो या काली दो बस मुझको तुम एक साली दो,

पत्नी कैथे की चटनी और साली बेल मुरब्बा है,
पत्नी सूखी मटर है साली चॉकलेट का डब्बा है,
कूलर लगती घरवाली और साली ठण्डा एसी है,
पत्नी देसी खादी है और साली वस्त्र विदेशी है,
हे भगवन अब कृपा करो वरदान मुझे मत खाली दो,

गोरी दो या काली दो बस मुझको तुम एक साली दो,

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