मंगलवार, 8 मई 2012

मतलब..

शब्द नही है प्यार है मेरा,शब्दों का संसार है मेरा, अगणित बातें कहने को(कलम)ब्लॉग ही अब आधार है मेरा.


                                                                  मतलब..


मतलब,
मतलब ये है कि दुनिया में जो भी कुछ हो रहा है, वो सिर्फ मतलब के लिए ही हो रहा है,
 मतलब ये कि आप अगर इस लेख को पढ़ रहे है तो मतलब से ही पढ रहे होंगे
और अगर नही पढेंगे तो भी मतलब से ही नही पढेंगे,
पढ़ने का मतलब नई जानकारी प्राप्त करना, ना पढ़ने का मतलब बिजली बचाना, समय बचाना...
खैर मेरा मतलब तो मतलब के बारे में लिखने से है..सो मै तो अपना मतलब पूरा किये लेता हूँ,
आप भी तो अपना कर रहे है...
सब कहते है दुनिया मतलब की है, पहले मै नही समझता था,
पर अब समझने लगा हूँ, कि संसार का सारा सार बेमतलब नही है,
विवाह मतलब से,
बच्चे मतलब से,
बच्चों की पढाई मतलब से,
दोस्तों से दोस्ती और लड़ाई मतलब से,
गाना मतलब से,
खाना मतलब से,
हंसना मतलब से,
रोना मतलब से,
जागना मतलब से,
सोना मतलब से,
बैठना मतलब से,
चलना मतलब से,
गिरना मतलब से,
सम्हलना मतलब से,
यानी कम शब्दों में ये समझिए कि समझना भी मतलब से
ना समझना भी मतलब से, कभी कभी सोंचता हूँ कि क्या निस्वार्थ कुछ भी नही,
फिर ये समझ में आता है कि सोंचना भी तो बेमतलब नही,
बिलकुल पक्का है कि मतलब के बारे में लिखने में भी तो मतलब है,
किसी को नाम का मतलब होता है किसी को दाम का मतलब होता है,
और मेरा तो मानना यहाँ तक है कि, जो लोग अन्ना हजारे या बाबा रामदेव नही बन पाते,
वो ब्लोगर बन जाते है, मतलब कुछ हुआ तो ठीक, नही तो प्रचार तो हो ही जाता है,
या फिर शौक पूरा करने का मतलब तो है ही,
अच्छा आप ही बताईये बिना मतलब भी कुछ होता है क्या?
बिना मतलब के तो पत्नी बात भी नही करती,
बिना मतलब के गाय घास भी नही चरती,
बिना मतलब के बेटा बाप से नही डरता,
बिना मतलब के सैनिक सीमा पे नही मरता,
बिना मतलब ब्लोगर ब्लॉग नही लिखता,
बिना मतलब के मतलब नही दिखता,
मेरे शहर की सारी सड़कें खोद डाली गई है, अब आप सोचोगे कि सड़कों की खुदाई
से किसी को क्या मतलब,
मतलब है जी, बहुत बड़ा मतलब है, सड़के खुदेंगी लोग गिरेंगे, चुटहिल होंगे,
रिक्शा या आटो से अस्पताल जाएंगे, बहुतेरे ग़रीबों का भला होगा,
नर्सिंगहोम और डॉक्टरों की चांदी हो जाएगी,
नगर निगम के अफसरों का कमीशन पक्का होगा,
वाहन जल्दी खराब होंगे, गरीब मकेनिकों का धंधा चल निकलेगा,
सड़क खुदाई के विरोध में नेता आंदोलन करेंगे,नेतागीरी की दुकान चल जाएगी,
मतलब ये कि सड़क खुदाई से हजारों लोगों का मतलब पूरा हो जाएगा,
मतलब ये कि हर,
बात में मतलब,
मुक्का लात में मतलब,
मतलब में मतलब,
बेमतलब में मतलब,
मतलब ये कि बे मतलब कुछ भी नही,
मुझे लगता है कि अब मेरा भी मतलब हो गया है, और मुझे कुछ दूसरे मतलब भी देखने है,
इसलिए अब आप भी अपने मतलब को मतलब से देखिये, मेरा मतलब तो आप समझ ही गए होंगे..
यहाँ मतलब से रोटी है मतलब से दाना है,
सच है दोस्तों बड़ा मतलबी जमाना है...

रेल का टिकट.

शब्द नही है प्यार है मेरा,शब्दों का संसार है मेरा, अगणित बातें कहने को(कलम)ब्लॉग ही अब आधार है मेरा...


                                                    


पहली बार हमने लिया रेल का टिकट,

लाइन लगी थी बड़ी विकट,
हम भी आंखी मीचे, लग गए सब से पीछे,
गरमी के मारे निकल रहा था पसीना,
तभी धकेलते हुए मुझे आगे बढ़ी एक हसीना,
होंठो पर लिए विज्योंमत्त हँसी,
अभिमन्यु की तरह लाइन के चक्रव्यूह में घुसी,
सभी की निगाहें उसी पर थी चप्की,
वो टिकट के लिए खिडकी पे लपकी,
मै इस अन्याय को ना सह पाया,
मैडम लाइन में आइये फरमान सुनाया,
इससे पहले कि लड़की अपना पर्स खोले,
भ्रष्टाचार के खिलाफ मुझे लड़ता देख कुछ और लोग भी बोले,
मैडम आप गलत कर रही है,
महिलाए अब पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर लड़ रही है,
लाइन चाइना वाल की तरह थी लंबी,
मैंने कहा:मेरे आगे लग जाओ महिला समर्थक है हम भी,
लड़की ने कर दिया इनकार,
मेरे पीछे खडी हो गई निर्विकार,
रह गया मै हक्का बक्का,
अचानक किसी ने मारा जोर से धक्का,
लाइन का सिस्टम बिगड़ा,
मेरे आगे पहलवान लगा हुआ था एक तगड़ा,
मुझे घूरा आँखे तरेरी गरमाया,
मैंने नेता की तरह पोलैटिली समझाया,
पहलवान ने मेरी औकात को बांचा,
आओ देखा ना ताव मार दिया तमाचा,
हमने भी ऊपर नीचे हाँथ पैर हिलाए,
पर पहलवान का कुछ भी ना बिगाड़ पाए,
लड़ाई की उम्र थी कम जैसे कनपुरिया बिजली,
पीछे से मैडम को गायब देख  मेरी तबीयत दहली,
तुरंत जेब टटोली पर्स देखा,
मेरे माथे पर खिंच गई चिंता की रेखा,
पर्स के साथ पीछे की जेब लापता थी,
मै चीखा,कोई तो बताओ यार मेरी क्या खता थी,

रविवार, 6 मई 2012

रे ध्वनि ....

रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,
चीखती फिरती फिर इस दम किसलिए तुम मौन हो ,
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,

मस्त करती मानसिकता शांत चित्त आनंन्द हो ,
अनुभूति की नव रौशनी और दिव्य परमानन्द हो
शांति की सरिता हो तुम या समुद्र का शोर हो ,
सहचरी हो जीव की या या जीव का तुम ठौर हो ...

रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,

गूंजती  है गूँज निर्जन बाग और खलिहान में ,
ध्वनि  मचलती है पवन के शोर में तूफ़ान में ,
कुछ तो कहो अब चुप न रहो अब शब्द के अवसान मे,
बोल दो मधु घोल दो तुम शब्द का सिरमौर हो,

रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,

कणिका  तुम्ही क्षणिका तुम्ही हर शै में बसती हो तुम्ही ,
शून्य दीखता शून्य पर ब्रम्हांड भी निर् ध्वनि नहीं ,
श्वांश का उच्छ्वांस का एहसास का तुम शोर हो ...
प्राण में पनघट में ध्वनि तुम ही हो या कोई और हो ,

रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,

नाता हो तुम जग से जगत का ,
सूत्र हो गत से विगत का ,
आधार तुम सब कार्य का ,शिष्टाचार हो व्यवहार का ,
मौन कैसे हो कोई जब व्याप्त तुम सब ओर हो ..
रे ध्वनि ,कुछ तो कहो तुम कौन हो ,