गुरुवार, 5 मई 2011

टिप्पणी "ना क"रें...

ह्रदय वेधी व्यथा, एक अदद टिप्पणी की कथा, कविताओं,लेखों,और ब्लागरों के संस्मरणों को टिपियाते टिपियाते एक अरसा बीत चला है! किन्तु किसी भी ब्लागर की नज़रें इनायत मेरी किसी भी रचना पर नही हुई कि कोई मुझे भी टिपिया देता,
जैसे अन्ना हजारे ने केन्द्र सरकार को टिपियाया है, कि सरकार टिपिया भी गई और टिपियाने का बुरा भी नही माना,
अब तो मै मानने लगा हूँ, कि टिप्पणी का प्राप्त होना भी सौभाग्य की निशानी है, सौभाग्यशाली मै भले न होऊ,
किन्तु टिप्पणी के संबध में मै "लक्की स्टार हूँ",
इतना टिपिया चुका हूँ लोगों को, कि लगता है जैसे मै पेशेवर टिप्पणीकार हूँ,
एकबार सड़क पर जा रहे एक भले मानुष को टिपिया दिया, उसने भी पलट कर मुझे टिपियाया,
पर उसके टिपियाने में और मेरे टिपियाने में थोडा फर्क था,
मैंने तो इकलौती जबान से टिपियाया था,
उसने अपने सारे शारीरिक अवयवों के साथ मुझे टिपिया दिया, घर आया तो पत्नी और बच्चों ने भी टिपियाया! कि मना करती रहती हूँ हर ऐरे गैरे को मत टिपियाया करो लेकिन मेरी बात तुम मानते कब हो,
पर मै स्वभाव से जिद्दी आदत से मजबूर,
टिप्पणी करने के लिए मशहूर,
पत्नी की बात पर टिप्पणी कर दी,
उन्होंने अटैची उठा के सामने धर दी,
मायके जाने की देने लगी धमकी,
मेरे मष्तिष्क में नई टिप्पणी चमकी,
मेरा लैपटाप दे के जाना,
और बच्चो को ले के जाना,
बोली तुम तो चाहते ही हो सर से बला टले,
फिर से तुम्हारा टिप्पणियों का ट्रक चले,
मैंने कहा भाग्यवान- थोडा सोंच समझ कर टिप्पणी किया करो,
मुझसे ना सही कम से कम भगवान से डरो,
पर मुझे टिपियाने का उनको बहुत दिनों के बाद मिला था मौका,
ट्वेन्टी-ट्वेंटी  की तरह टिपियाने लगी छक्का चौका,
मैंने बोला- राखी जी संभावना,
कुछ तो समझो मेरी भावना,
पत्नी ने कहा- दुनियां में सब प्राणी एक दूसरे को टिपिया रहे है,
आपने टिपियाया तो बाहर से पिट के आ रहे है,
मुझे लगने लगा अब मेरी टिप्पणियां हो रही है स्वारथ,
क्योंकि टिप्पणी की वजह से घर में छिड़ गई थी महाभारत,
मित्रों टिप्पणी के रूप अलबेले है,
लाखों है दुर्योधन द्रोपदी अकेले है,
द्रोपदी ने एतिहासिक टिप्पणी किया था,
भरी सभा में अपमान का घूँट पिया था,
पर हम द्रोपदी नही है,ना ही दुर्योधन या दुष्शासन,
मै टिप्पणी में रखता हूँ निश्चित अनुशासन,
फिर भी क्या मालूम कब टिप्पणी बन जाए नाक रे, कृपया टिप्पणियाँ बचाएं टिप्पणी "ना क"रें...