शनिवार, 10 दिसंबर 2011

आरक्षण..

शब्द नही है प्यार है मेरा,शब्दों का संसार है मेरा, अगणित बातें कहने को(कलम)ब्लॉग ही अब आधार है मेरा.


समाज में असामाजिकता बढ़ती जा रही है,अमीर और गरीब का अंतर,उंच और नीच का भेदभाव,मनुष्य की
मौलिकता को नष्ट कर रहा है, ऊपर से संविधान में आरक्षण का नियम सामाजिक तानेबाने को छिन्नभिन्न
कर चुका है,  मात्र आठ वर्षों के लिए आरक्षण का प्रावधान संविधान में किया गया था,किन्तु देश के कर्मठ राजनेताओं की ईमानदारी और कर्मठता के कारण साठ वर्षों के उपरान्त भी आरक्षण के समाप्त होने का कोई मार्ग नही दिख रहा है,

कुंठित मानसिकता से उत्पन्न पंक्तियाँ  आपके समक्ष प्रस्तुत है......


आरक्षण..



दबी हुई उस चिंगारी को अंगारा बन जाने दो,
सुप्त हो चुकी ज्वालाओं को नीलगगन तक जाने दो,

स्वर्णिम है इतिहास हमारा स्वाभिमान से भरा हुआ,
पुरखों की सत् शिक्षाओं का अमृत उर में धरा हुआ,
सत्संगी बन शंकर प्रभु के भजन हमें अब गाने दो,

दबी हुई उस चिंगारी को अंगारा बन जाने दो,
सुप्त हो चुकी ज्वालाओं को नीलगगन तक जाने दो,

आरक्षण दैत्य हमारी चोटी पकडे खडा हुआ,
कहो पुराना घाव ये मित्रों फिर से क्यों कर हरा हुआ,
जवालामुखी बने मनस को अब शीतल हो जाने दो,

दबी हुई उस चिंगारी को अंगारा बन जाने दो,
सुप्त हो चुकी ज्वालाओं को नीलगगन तक जाने दो,

रोज कमाना रोज का खाना ये तो सब नित चलता है,
स्मृति में बस बसा के रक्खो जीवन सूरज ढलता है,
अस्त हुए उस सूरज को फिर से अब उग जाने दो,

दबी हुई उस चिंगारी को अंगारा बन जाने दो,
सुप्त हो चुकी ज्वालाओं को नीलगगन तक जाने दो,

कब तक मौन जियेंगे जीवन,होम करेंगे यूँ ही तन मन,
विष के घूँट पिए है अब तक,और पियेंगे जाने कब तक,
पाप पुन्य जो बतलाते है पुन्य उन्हें कर जाने दो,

दबी हुई उस चिंगारी को अंगारा बन जाने दो,
सुप्त हो चुकी ज्वालाओं को नीलगगन तक जाने दो,

किया नही जो अभी तलक मिल कर सब वो काम करो,
बाँध मुष्टिका साथ चलो सब रन में अब हुंकार भरो,
नाद ब्रम्ह गुंजार करो फिर दुनिया को थर्राने दो,

दबी हुई उस चिंगारी को अंगारा बन जाने दो,
सुप्त हो चुकी ज्वालाओं को नीलगगन तक जाने दो.....