मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

महंगाई...

कल रात अपने कमरे के भीतर हम दरवाजे से लगाए हुए कान,

सुन रहे थे सड़क पर चल रहा कुत्तो का व्याख्यान,

सारे कुत्ते कई दलों में बंटे थे,

अपनी बात कहने के लिए एकदूसरे के सामने डटे थे,

सभी दिखा रहे रहे अपनी अपनी प्रभुताई,

 हर स्वान भौक भौक के कह रहा था,

हाय रे महंगाई हाय रे मांगे हाय रे महंगाई,

 विषय गंभीर था, आगे सुनने के लिए मै भी अधीर था,

जैसे ही मेरी जिज्ञासा ने जोर पकड़ा,

बाहर एक ताकतवर कुत्ता मरियल कुत्ते पे अकडा,

 चुप बैठ एक्सरे फिल्म,

 नहीं है तुझे किसी बात का इल्म,

 पूरा देश महंगाई की आग में जल रहा है,

 और तू यहाँ खाली बातो की पूरियां तल रहा है,

 कहते है लोग भारत देश है महान,

 कभी हुए थे यहाँ राम कृष्ण और टीपू सुलतान,

 कभी था अपने देश की संस्क्रति का बोलबाला,

 पर आज है चारा स्टंप और खाद्द सामग्री घोटाला,

 पेट्रोल की कीमत हो रही है केसर जैसी,

औ इंजेक्सन लगवा के दूध दे रही है आज भैसी,

  अब तो खूब बिक रहा है ब्रांडेड आटा,

ट्रक और कार बेचते बेचते नमक बेचने लगे टाटा, ,

तुम सबको दोना चाटने की पड़ी है,

 और आज भारत माता तबाही की कगार पर खड़ी है,

 कुत्तों के सुन विद्द्वता पूर्ण विचार,

मेरे ह्रदय में हुआ क्रांति का संचार,

कोने में रखा डंडा हमने चुपके से उठाया,

और डंडे के बल पर कुत्तो को इंसानियत का परिचय करवाया,

लौट कर अपने कमरे के भीतर लेते हुए अंगड़ाई,

मैंने भी नारा लगाया वाह री महंगाई वाह री महंगाई वाह री महंगाई,                                                                                          आप सबका                                                                                   राजेंद्र अवस्थी (कांड)