सोमवार, 27 दिसंबर 2010

मेरा भारत महान हो गया..

जब से मेरे देश में कांग्रेस राज हो गया,
सस्ता हो गया आदमी मंहगा प्याज हो गया,
कितनी ईमानदारी से करते है बेईमानी देखो,
भ्रष्टाचार में नंबर वन हिन्दुस्तान हो गया,
और बारिश से अब डरने लगे है लोग,
क्यों की पिछली बरसात में पूरा शहर टाइटेनिक जहाज हो गया,
दुहाई देते है सब इंसानियत की मगर,
न जाने कितने बच्चो का कत्ले आम हो गया,
सुन कर अब तालियाँ मत बजाओ लोगो,
मेरा ये पैगाम भी बदनाम हो गया,
मल्टीमिडिया सेट अब बच्चे भी रखते है जेब में,
इसीलिए तो मित्रो नेटवर्क जाम हो गया,
अब तो स्कूल में होता है बलात्कार,
ये कैसी शिक्षा का प्रचार हो गया,
कटे हांथो से देश की पकडे हो बागडोर,
तभी तो कही संसद भवन कही अक्षरधाम हो गया,
हवाओ में भी यारो घुल रहा है अब जहर,
फिर भी मेरा भारत महान हो गया..............फिर भी मेरा............

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

हंसी पर रोती जिन्दगी....

युवा वर्ग के अंतर्मन की व्यथा को,अनिवार्य शिक्षित होने की कथा को,    लिपिबद्ध करने का छोटा सा प्रयास....


हंसी पर रोती जिन्दगी, ये कैसी समाज की दरिंदगी, बच्चो का खोता जा रहा है बचपन, हर किसी में ढूंढते है अपनापन, मै इसी तरह का कुछ लिखने वाला था, अंतर्मन में दुविधाओ को पाला  था, पर जिन्दगी रोते हुए भी हंसती है, समय की कसौटी पर हर एक को कसती है, और आंकड़ो के साथ अपनी हर बात प्रस्तुत करती है, मै भी कुछ आंकड़े आप के सामने ला रहा हूँ कृपया ध्यान दे,                          (  परीक्षाओ में फेल होने के मुख्य कारण ) सीधा जवाब है -:  १ वर्ष के ३६५ दिन होते है, रोज ८ घंटे सोने के यानि पूरे साल के १२२ दिन ३६५-१२२=२४३ दीपावली अन्य त्यौहार आदि तथा गर्मियों की छट्टियों के दिन-: ६१    २४३-६१=१८२ दिन, उसमे भी ५२ रविवार १८२-५२=१३० दिन, आकस्मिक और स्कूली त्यौहार के ४० और व्यक्तिगत १५ दिन-:   १३०-५५=७५ दिन खाने पीने नहाने के ३ घंटे के हिसाब से ४६ दिन-: ७५-४६=२९ दिन रोज के १ घंटे दोस्तों के उसके १५ दिन -: २९-१५=१४ दिन अब उसमे १० दिन तो बीमार रहते है-: १४-१०=४ दिन बचे परीक्षाओ के समय भी दूरदर्शन देखने के ३ दिन-: ४-३=१ दिन बचा मित्रो, एक साल में एक ही दिन तो जन्म दिन आता है, अब जन्म दिन में कौन पढ़ाई करे ?

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

महंगाई...

कल रात अपने कमरे के भीतर हम दरवाजे से लगाए हुए कान,

सुन रहे थे सड़क पर चल रहा कुत्तो का व्याख्यान,

सारे कुत्ते कई दलों में बंटे थे,

अपनी बात कहने के लिए एकदूसरे के सामने डटे थे,

सभी दिखा रहे रहे अपनी अपनी प्रभुताई,

 हर स्वान भौक भौक के कह रहा था,

हाय रे महंगाई हाय रे मांगे हाय रे महंगाई,

 विषय गंभीर था, आगे सुनने के लिए मै भी अधीर था,

जैसे ही मेरी जिज्ञासा ने जोर पकड़ा,

बाहर एक ताकतवर कुत्ता मरियल कुत्ते पे अकडा,

 चुप बैठ एक्सरे फिल्म,

 नहीं है तुझे किसी बात का इल्म,

 पूरा देश महंगाई की आग में जल रहा है,

 और तू यहाँ खाली बातो की पूरियां तल रहा है,

 कहते है लोग भारत देश है महान,

 कभी हुए थे यहाँ राम कृष्ण और टीपू सुलतान,

 कभी था अपने देश की संस्क्रति का बोलबाला,

 पर आज है चारा स्टंप और खाद्द सामग्री घोटाला,

 पेट्रोल की कीमत हो रही है केसर जैसी,

औ इंजेक्सन लगवा के दूध दे रही है आज भैसी,

  अब तो खूब बिक रहा है ब्रांडेड आटा,

ट्रक और कार बेचते बेचते नमक बेचने लगे टाटा, ,

तुम सबको दोना चाटने की पड़ी है,

 और आज भारत माता तबाही की कगार पर खड़ी है,

 कुत्तों के सुन विद्द्वता पूर्ण विचार,

मेरे ह्रदय में हुआ क्रांति का संचार,

कोने में रखा डंडा हमने चुपके से उठाया,

और डंडे के बल पर कुत्तो को इंसानियत का परिचय करवाया,

लौट कर अपने कमरे के भीतर लेते हुए अंगड़ाई,

मैंने भी नारा लगाया वाह री महंगाई वाह री महंगाई वाह री महंगाई,                                                                                          आप सबका                                                                                   राजेंद्र अवस्थी (कांड)

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

बेइज्जती....

बेइज्जती हम बेशर्मो का गहना
बिना बेइज्जती के क्या रहना
पूरा दिन जाता है खाली 
जब नहीं देता कोई गाली
मन उदास रहता है
खाली बकवास रहता है
बेशर्मी का ओढ़े लबादा
झूठा करता हू सबसे वादा
कोई भी बात हो
दिन हो या रात हो
जलालत है अपनी सौगात
झूठ है भाई, धोखा अपनी जात
रिश्तेदार है भ्रष्टाचारी
सगे सम्बन्धी अत्याचारी
पर कहना मत कभी मुझे नेता
गला हमने कभी किसी का  नहीं रेता
मेरी  इंसानियत सब को खलती है
शायद ये हमारी गलती है
के मै मानता हूँ  पूरी दुनिया को अपना घर
और अपने घर को तोड़ने से पहले लगता है डर
डर कही कोई बेइज्जती ना कर दे
सरे राह कोई इल्जाम मेरे सर ना धर दे
पर डरना और मरना एक जैसा है
न जाने ये संसार कैसा है
जो स्वाभिमान के साथ जीने भी नहीं देता
और सम्मान के साथ मरने भी नहीं देता
कभी हिजड़ा बना देता है और कभी कीड़ा
जीते जी देता है हर तरह से पीड़ा
मरने के बाद बन जाते है स्मारक
मौत चाहे जितनी भी रही हो ह्रदयविदारक
इसीलिए मित्रो बहुरूपिया चरित्रों
बेशर्मी के साथ जीना सीखो
बेइज्जती के बाद जी भर के चीखो
और दुनिया को बताओ मै नेता नहीं हूँ
इंसानियत के नाते सिर्फ देता हूँ लेता नहीं हूँ,,,...
                                                                   
                                                                   राजेंद्र अवस्थी...